सूखे जज्वात का निहोरा

खुशी है अगरचे इतनी कि गम ने तो कभी साथ न छोड़ा
आग तो जलती रही, बुझती रही, धुआँ ने साथ न छोड़ा

खयालों में जीता भी रहा, मरता भी रहा थोड़ा-थोड़ा
राह कहीं, राही कहीं कि मैं मुसाफिर न राह का रोड़ा

टूटता ही रहा ता-उम्र किसी के हाथ गया नहीं जोड़ा
तारा नहीं, किरकिरी भी नहीं, रहा आँख में बन फोड़ा

एक बार कहकर देखा होता तुमने, ज्यादा नहीं थोड़ा
अब तो खैर है साफ सपना नहीं नादानी जिसे अगोरा

रक्षा में हत्या, हालाँकि बात कहने के पहले हाथ जोड़ा
जिसे जबरिया समझे, था वह सूखे जज्वात का निहोरा

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