बस्ता पर पकड़

बस्ता पर पकड़!
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ओ जब एक से बढ़कर सब बन गई
लगातार उनकी आवाज गूँज रही थी
मैं इस दौरान लगातार सफर में रहा!


सफर में रहा नदियों की तरह
बहती विभिन्न भाषाओं बोलियों की
भंगिमाओं से रू-ब-रू होता रहा

कोई यकीन करे, तो कर ले!
मैं मातृभाषाओं की
विभिन्न भंगिमाओं में
उन उसटी अनुगूँजों का सीधा तर्जुमा
सुनता रहा, सफर में।

कितनी फीकी हो गई
अनुगूँजों के इन मातृभाषायी
तर्जुमाओं के सामने सदियों से
दुहरायी जा रही वाणी --- या देवी सर्वभू....
कितनी फीकी हो गई!

मैं मातृभाषाओं में
हो रही इन अनुगूँजों की
तर्जुमाओं को
अपनी मातृभाषा
मैथिली में
आप तक पहुँचाना चाहता हूँ - -
बस्ता पर गाम क बेटी क
पकड़ आर बढ़ि गेल छै मालिक
आब एकरा अपने
जेना बूझियै वा
नै बूझियै सरकार!

उधर बनारस
इधर मगध मिथिला
मैं इस दौरान लगातार सफर में रहा!
सफर में रहा बिहारी नदियों की तरह।

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