बे-हिस सपने का मारा नहीं था


सुनो, मैं उधर जा नहीं रहा था
बस, हवा का रुख बता रहा था

किसी डूबते का सहारा नहीं था
बे-हिस सपने का मारा नहीं था

दोष था बसा कि नारा नहीं था
थी नजर मगर नजारा नहीं था

जनतंत्र में कोई चारा नहीं था
बल-बुतरू हैं, बेचारा नहीं था

मजबूरी में कोई चारा नहीं था
न समझो, कि गुजारा नहीं था

ठीक से कोई ललकारा नहीं था
बे-हिस सपने का मारा नहीं था

कोई टिप्पणी नहीं: