शोधांत समारोह में अध्यक्षीय भाषण


हमने सुना, हाथी पागल हो गया था
अपनी ही सेना को कुचलने लगा
कोहराम मच गया
सैनिक अपने ही हाथी से कुचले जाने लगे
असल में हाथी को कुछ नहीं हुआ था
महावत के दिमाग में ही खलल था
महावत भी क्या करता अपने दिमाग से कुछ करने की
इजाजत कभी नहीं होती खासकर युद्ध में
तो राजा का ही करिश्मा था
लगातार की हार से राजा को परेशान था
कारण राज ज्योतिषी को पता था
पूछे जाने पर उसने बताया
महराज आपकी सेना में कुछ अशुभ सैनिक हैं
उन्हें मारना ही होगा आपको हार से बचने के लिए
ज्योतिषी भी क्या करता, ऐसा ही कहने की हिदायत थी
दुश्मन हार हाल में जीतना चाहता था

करुण होकर पूछा था महराज ने राज ज्योतिषी से
बहुत भरोसा था उसे राज ज्योतिषी पर
पूछा कि अशुभ सैनिक की पहचान कैसे होगी!
यह बताना एक मुश्किल काम था राज ज्योतिषी के लिए भी
अंत में फैसला हुआ इसे हाथी पर छोड़ दिया जाये
अब हाथी को क्या पता कि पाँव के नीचे कौन है
जो भी है पाँव के नीचे वह अशुभ ही है
तय करना बहुत मुश्किल था
मुश्किल हो तो फिर जो भी आ जाये पाँव के नीचे
उसका कुचला जाना तो तय होता ही है

शोधांत समारोह में अध्यक्षीय भाषण
एक भावुक मोड़ पर था और निष्कर्ष चू रहा था
निष्कर्ष चू रहा था टप टप टप!
निष्कर्ष कि पाँव में पहचान की क्षमता न होने पर
दोष दिमाग पर डाल दिये जाने का रिवाज है
पाँव यानी पद। जन पद!
बहुत कुछ बाकी है शोधांत समारोह के अध्यक्षीय भाषण में

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