बात सँवरेगी! किसी और को दोष देकर

प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan

क्या करूँगा दोस्ती का अमरकोष लेकर
बात सँवरेगी! किसी और को दोष देकर

इश्क तो ठीक क्या मिलेगा होश खोकर
माना कि आसान जीना मदहोश होकर

चाँद कूदता आकाश में, खरगोश होकर
जैसे-तैसे वह जीता है सफेदपोश होकर

विचार वो फैले जो खून में जोश होकर
मुहब्बत जिंदा है पँखुरी पर ओस होकर

हाँ मरना क्या एहसान फरामोश होकर
ये जीना भी क्या एहसान फरोश होकर


बात सँवरेगी! किसी और को दोष देकर

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