मेरा दुख समझ सकोगे

मेरा दुख समझ सकोगे
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ओफ्फ!! यह क्या किया तुम ने!
कितने लोगों का सिर शर्म से गड़ गया है
मेरा भी; तुम्हें पता हो, न हो
मैं भी उसी भाषा में लिखने की कोशिश करता हूँ
उसी भाषा में नब्बे फीसदी बोलने की कोशिश करता हूँ
जिस भाषा में तुम; मुक्तिबोध ने तो ऐसा नहीं सिखलाया था
न नागार्जुन, न केदार, न त्रिलोचन, न समशेर ने,
तुसली-कबीर ने तो कत्तई नहीं, न भारतेंदु न प्रेमचंद ने
अफसोस जिस बनारस में रहते थे वे लोग जिनके उत्तराधिकारी तुम एक
वे सभी शर्मिंदा हैं, कि दुनिया उनकी कब्र से हिंदी में पूछेगी
वे क्या जवाब देंगे, वे शर्म से गड़े हुए, हतवाक
ये भाषा तुमने कहाँ से सीखी!

कानून की नहीं जानता पर
तुमने उन सभी को लज्जित ही नहीं दंडित भी कर दिया
जिन्होंने तुम्हारे कंधे पर यकीन की पालकी सजायी थी
ओफ्फ!! तुमने उसी कंधे पर यकीन की अर्थी निकाली!

मेरा दुख समझ सकोगे ▬▬
मैं फिर भी उसी भाषा में लिखने की कोशिश कर रहा हूँ
जिस भाषा को सड़क पर घसीटकर तुमने तार-तार कर दिया

मेरा दुख समझ सकोगे!!!

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