राजनयिक सदाशयता और व्यावसायिक व्यावहारिकता

राजनयिक सदाशयता और व्यावसायिक व्यावहारिकता
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बचपन को याद करें तो दुकानों में दिलचस्प बोर्डों की याद आती है ▬ 'उधार प्रेम की कैंची है', 'आज नगद कल उधार', 'उधार माँगकर शर्मिंदा न करें', 'बिजनेस में दोस्ती नहीं', आदि! बिजनेस में दोस्ती नहीं का ही दूसरा पहलू है बिजनेस में दुश्मनी नहीं। दुनिया के बाजार में और नागरिकों के उपभोक्ता में बदल जाने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, और सच पूछिये तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी, राजनयिक सदाशयता का महत्त्व स्वाभाविक रूप से व्यावसायिक व्यावहारिकता से तय होने लगा है। अमेरीकी राष्ट्रपति एवं राजनयिकता के रुख, चीन की पहल, पाकिस्तान की प्रतिक्रिया, श्रीलंका के उत्साह आदि को ध्यान में रखने पर राजनयिक सदाशयता और व्यावसायिक व्यावहारिकता के अंतस्संबंध को सहज ही
समझा जा सकता है। भारत श्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व में दक्षिण एशिया से शुरू कर पूरी दुनिया में व्यावसायिक संभावनाओं को नये सिरे से तलाशना और टटोलना चाहता है तो निश्चित ही इसका स्वागत किया जाना चाहिए। इसी क्रम में शपथग्रहण समारोह में आमंत्रण की प्रासंगिकताओं को भी परखना चाहिए। युपीए सरकार, एनडीए सरकार, मनमोहन सिंह सरकार, मोदी सरकार का नाम भले ही दें, लेकिन अपनी अंतर्वस्तु में वह भारत सरकार ही होता है और यह अखंड होता है। देश के सामान्य उपभोक्ता-नागरिक के रूप में प्राथमिक तौर पर, मुझे लगता है कि शपथग्रहण समारोह में आमंत्रण का यह प्रतीकात्मक पहल सकारात्मक कदम है इसका स्वागत किया जाना चाहिए और इस कदम की दिशा और गंतव्य के स्पष्ट होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

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