घोषणा और भाषण से घिरे लोग

घोषणा और भाषण से घिरे लोग

जब कभी
एहतियात के तौर पर
सारे इंतजाम कर लिये जाने की होती है घोषणा
स्याह होने लग जाती है धूप
बदहवाशी में एक दूसरे का चेहरा
देखने लग जाते हैं लोग
यह सोचकर कि
अब कुछ चेहरे गायब होनेवाले हैं बस्ती से
सदा के लिए

जब कभी
भाषणों में उमड़ता है
आवाम के प्रति प्यार का सागर
कूतने लग जाते हैं लोग अपने माँस का वजन
क्योंकि लोगों ने कई बार देखा है
कसाई को बड़े प्यार से
सहलाते हुए बकरे की खाल

घोषणा और भाषण के बीच जवान हुई भाषा में
उजाला के नोचे जाने की खबर अब छिपी नहीं है
यही भाषा जब घोषणा और भाषण के मुकाबिल
खड़ी होने की कोशिश में कविता में ढलती है
तब कविता सिर्फ सुंदर शब्दों का सुंदर सिलसिला नहीं रह जाती है
हाँ कविता, कविता नहीं रह जाती है
आदमी के अंदर
दहकते हुए गोलों के विस्फोट की शुरुआत होती है
बड़ी तेजी से खेत, खंदक में बदलने लग जाते हैं
जब कभी घोषणा और भाषण से घिरे लोग
सही कविता को अपने साथ पाते हैं

कोई टिप्पणी नहीं: